Sunday, May 22, 2016

The Unrequited Love!

पतझड़ का मौसम आ चूका था। सावन का इंतज़ार सब ही कर रहे थे। मैं भी गरजते बरसते सावन के आने कि दुआ कर रही थी। यही तो था वो मौसम, जिसमें मैं उसके सब से ज़्यादा क़रीब होती हूँ। उसका न होना भी उसी कि याद दिलाता है।
वैसे तो मैं अपने आप को एक ऐसे समुन्दर में डूबता हुआ महसूस करती हूँ, जो शांत है। सिर्फ मुझे अपने अंदर समेटे जा रहा है। मेरा दिल डूबता जा रहा है। दिमाग़ लड़ता है, फड़फड़ाता है, किसी तरह उस शांत लहर से बाहर आने का रास्ता ढूंढता है। पर फिर थक हार के बैठ जाता है। और फिर आँखें रो देती हैं। अपनी बेबसी पे। अपनी लाचारी पे। अपनी टूटी छूटी और रूठी मोहब्बत पे।
फिर सोचती हूँ, सावन की बूंदे जब मेरी आँखों से गिरती हैं, तो शायद उसके दिल को भी लगती होंगी। शायद उसे भी मेरी याद आती होगी, शायद वो भी मेरे लिए तड़पता होगा। यही सोच, हर सावन, बादल का साथ देती हूँ।
मोहब्बत है, उससे, कैसे बताऊँ उसे? शायद मेरे आंसू उसे मेरे इश्क़ का एहसास दिल दें।

3 comments: