Saturday, January 21, 2017

Sirf tum!


कभी कभी मैं सोचती हूँ, क्यों ज़िन्दगी इतनी मुशकील सी हो गयी है। तम्हारे साथ गुज़ारे लम्हे क्यों मुझे परेशां करते हैं। सोचते सोचते ट्रेन का वो सफ़र याद आता है जिसमें मैं और तुम हसते हस्ते रो पड़े थे। जिसमें वो ग़ज़ल सुनते सुनते हमारा सफ़र कब कटा पता ही नहीं चला।
अजीब सी ख्वाहिशें हैं, हर करवट बदल सी जाती हैं। कभी तुम्हारा साथ, कभी तुम्हारी बातें और कभी तुम।
मौसम की तरह तुम्हारा बदलना, हस्ते हस्ते गुस्सा हो जाना, अपनी बातों से खुद ही पलट जाना, इन सब बातों की आदत से हो गयी है।
तनहा चलते चलते पलट जाती हु मैं जैसे तुमने आवाज़ दी हो, पलट के देखती हु तो सिर्फ तन्हाई दिखती है।
क्यों, आखिर क्यों ज़िन्दगी इतनी खली हो गयी है। और क्यों कोई तुम जैसा नहीं मिलता?

हाँ। आज मान लिया मैंने, मोहब्बत ही गयी है तुमसे..सिर्फ तुमसे :)

XoXo
Nashee

No comments:

Post a Comment