Monday, April 25, 2016

kaash!

ज़िन्दगी की भाग दौड़ में..अक्सर हम खुद को कहीं पीछे छोड़ आते हैं।
अपनी ख्वाहिशो क पीछे भागते भागते हम अपने आप को ग़ायब कर लेते हैं। ना...दुनिया की नजरो से नहीं..खुद की नरज़ो से ओझल हो जाते हैं हम..
हम ये भूल जाते हैं..की ऊपर कोई है..सर्वशक्तिमान..जो हमारी कहानी लिख रहा है..फिर क्यों हम अंधाधुंध भागते जाते हैं..
क्यों किसी और को सजा देने क बहाने..हम खुद को ही सजा सुना देते हैं..ग़लतियो पे ग़लतिया करते जाते हैं..और फिर उन ग़लतियो को सुधरने न पाने की वजह से..अपने आप सेनफरत करने लगते हैं।
सफ़र कोई भी हो..ख़त्म होता है। मंज़िल मिलती ही है..चाहे जितना समय लग जाये। फिर हम क्यों बेसब्रो की तरह, उल्टा दौड़ते हैं।
काश क हम में इतना सब्र होता।काश क हम ऊपर वाले के निर्णय का इंतज़ार करते।
तब हमारी कहानी..बचपन वाली राजकुमारी जैसे होती।
काश।

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